जब भी हम किसी आकर्षक व्यक्ति को देखते हैं तो उसके प्रति हमारे शरीर में जो कामुक भाव पैदा होता है उसे “स्पॉनटेनियस डिज़ायर” या कहें “स्वाभाविक कामना” कहा जाना चाहिए ना कि काम वासना। ये खुलासा मैसाच्युसेट्स-आधारित एक प्रख्यात मनोवैज्ञानिक और लेखक ने अपने शोध में किया है।
मनोवैज्ञानिक एमिली नागोस्की ने अपने शोध में पाया कि जहां 70 फीसदी मर्द “स्वाभाविक कामना” अनुभव करते हैं, वहीं 10 से 20 प्रतिशत महिलाओं में इस तरह की तमन्ना देखी गई है।
मैसाच्युसेट्स स्थित नॉर्थहैम्पटन के स्मिथ कॉलेज में वेलनेस एजुकेशन की निदेशक नागोस्की कहती हैं, “मेरे ख्याल में हम सभी से ‘स्वाभाविक कामना’ की उम्मीद रखते हैं क्योंकि ज्यादातर मर्द ऐसा ही महसूस करते हैं”।
औरतों में ‘सेक्स ड्राईव’ या ‘काम वासना’ होनी चाहिए, ये ख्याल महिलाओं में इसलिए है क्योंकि मर्द ऐसा चाहते हैं।
अपनी नई किताब “कम ऐज़ यू आर” में नागोस्की लिखती हैं, “हर औरत की अपनी एक खास कामुकता होती है, एक फिंगरप्रिंट की तरह। और-तो-और शारीरिक संरचना देखी जाए तो महिलाएं पुरुषों से ज्यादा विविध होती हैं। उनका सेक्सुएल रिस्पोंस मेकेनिज़म भी अलग होता है, या कहें कि काम वासना को लेकर उनकी प्रतिक्रिया अलग होती है”।
महिलाओं को दूसरों की देखा-देखी खुद को काम वासना के हिसाब से नहीं तोलना चाहिए।
वो कहती हैं, “हमें दूसरों के तजुर्बों के आधार पर खुद का आंकलन नहीं करना चाहिए। यौन सुख के लिए ‘स्वाभाविक वासना’ की ज़रूरत कतई नहीं होती”।
नागोस्की के मुताबिक अकसर महिलाओं को जो कामुक अनुभव होता है वो प्रतिक्रिया के तौर पर होता है। यानी जब उन्हें मर्द छुएगा तभी उनमें उत्तेजना पैदा होगी। उनमें काम वासना ये कतई सोचकर पैदा नहीं होती कि मर्द उन्हें कैसे छूएगा या फिर सहलाएगा। अकसर वो पहले से ऐसा सोचकर उत्तेजित नहीं होती।
नागोस्की कहती हैं, “पहले उत्तेजना पैदा करो, फिर काम”।
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