आपको एक डब्बे के दो खानों में से किसी एक को चुनना है…
आईए जानते हैं कैसे:
1. भौतिक खरीददारी का एक सीमित थ्रिल फैक्टर होता है
जब हम अपनी जेब से क्रेडिट कार्ड निकालकर अपने लिए मनचाहे जूते, कपड़े, बैग वगैरा खरीदते हैं तो हमारे अंदर खुशी की एक लहर सी दौड़ जाती है। लेकिन उसके बाद क्या? इन्हें आप कुछ देर पहनते हैं और अगले कुछ ही दिनों में आप इनसे ऊबने लगते हैं। और एक बार फिर नई शॉपिंग के लिए खुद को तैयार करने लगते हैं… है कि नहीं?
2. नए तजुर्बे आपके दिमाग में नई सोच भर देते हैं
तजुर्बा किसी भी इंसान के सोजने का तरीका और जीवन के प्रति उसके नज़रिए को पूरी तरह से बदल सकता है। वो उसे एक नई ज़िंदगी दे सकता है। आप कैसे आजतक अपना जीवन जीते आए हैं और कैसे आगे जिएंगे, ये सब आपके तजुर्बों पर निर्भर करता है। कई चीज़ों से आपका तार्रुफ आपके जीवन को और उपयोगी बना सकता है और आपका लाईस्टाईल भी पॉज़िटिव हो जाता है। नई दिनचर्याएं, नई भाषाएं, नए चेहरे हमें अपने रोज़मर्रा की दौड़–भाग से दूर ले जाते हैं और वैज्ञानिक तौर से देखा जाए तो ये हमारे दिलो–दिमाग के लिए भी लाभकारी है। वैसे इसके लिए एक टर्म भी है.. न्यूरॉबिक्स… अगर ज्यादा जानना चाहते हैं तो इसे गूगल करिए…
3. तजुर्बों पर किया गया खर्च सही मायनों में निवेश है
अगर आपकी पिछली यात्रा का तजुर्बा बेहद खराब रहा हो तो फिर भी आपको कुछ सीखने को ही मिला होगा। आपने अपने जीवन का सबसे बेस्वाद खाना खाया है तो भी चलेगा…. क्या पता आप किसी से बात ही न कर पाए हों क्योंकि आपको उनकी भाषा समझ नहीं आई, लेकिन आप उनकी भाषा के कुछ छोटे–मोटे लफ्ज़ ज़रूर याद रखेंगे और जब अपने दोस्तों से मिलेंगे तो अपना तजुर्बा बढ़–चढ़ के सुनाएंगे… अरे वाह!!!!! तुम तो फॉरनर ही हो गए…!!!!
4. खपत से और खपत होती है
ये पापी चक्र है। हर खरीद के साथ आपको और ज्यादा चाहिए। आपने अभी–अभी अपना क्रेडिट कार्ड स्वाईप कर अपनी पसंदीदा घड़ी खरीद ली… लेकिन ठहरो… रुको… अरे यार दे दूसरी घड़ी भी तो मस्त है…!!! मन तो इसे खरीदने का भी है!!! पिछली घड़ी की खुशी खत्म और नई की तमन्ना चालू… अब ध्यान सिर्फ नई घड़ी पर है… जो खरीदी है वो शायद कलाई पर पहनी भी ना हो…
लेकिन जब आप क्रिकेट मैच या फिर किसी प्ले का टिकट लेगें तो उसकी उत्तेजना घड़ी खरीदने या नए कपड़े खरीदने से ज्यादा होगी। भौतिक खरीद आपको ज्यादा देर खुश नहीं रख सकतीं। चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात… लेकिन तजुर्बे आपको चार दिन की चांदनी ही नहीं, जिंदगी भर की रौशनी भी देते हैं.
5. तजुर्बा सिर्फ देता है, लेता कुछ नहीं
आखिरी में तजुर्बे ही हमें लोगों के करीब ले जाते हैं। खुशी सिर्फ नई चीज़ें खरीदना ही नहीं है। अगर आप शॉपिंग करना चाहते ही हैं तो उन चीज़ों पर खर्च कीजिए जो आपकी अलमारी को भरने की जगह आपकी जिंदगी को तजुर्बों से भर दें। भौतिक सुख ना ही सिर्फ दो दिन के लिए रहते हैं, बल्कि दूसरों की जलन का कारण भी बनते हैं। अपने तजुर्बे बांटो… नए दोस्त पक्का मिलेंगे… अपार खुशियां भी…
अब क्या सोच रहे हो… वो टिकट उठाओ और पैकिंग शुरू करो…!!!!!