एक बात अजब सी है थोड़ी अलग सी!
खाना तो रोज ही हम सब खाते है कोई नयी बात नहीं है पर इस बच्चे को जब खाते देखा तो मेरी भूख बढ़ गयी
दिल से कह रही हूँ मुझे खाने से प्यार हो गया । जिस नज़ाकत से, तसल्ली से गोलू मोलू इन चावलो को अपने होठो से लगा रहा था, सच्ची मेरा तो दिल ही खुश हो गया।
मै कुछ घड़ी जब बैठी इसके पास, इसकी मैं जो बोझा डो रही थी, मेरी इन हरकतो को देखकर मुस्कुरा रही थी। उनको खुद पर हॅसते देख थोड़ी झिझक हुई मुझे, पर मैं बैठी रही और खुद बच्ची बनके उसके साथ खेलने लगी।
सच्ची कहॅू तो मुझे ये सब करने में कही ना कही अपना स्वार्थ नज़र आया क्योंकि कही ना कही कुछ आसपास के लोग मुझे बडे़ ही ध्यान से देख रहे थे और मुझे ये बात थोड़ी अच्छी लग रही थी।
उन कुछ घडि़यो में मुझे पता ही नही चला कि कब मेरे चालाक दिमाग से ये सारी बाते गायब हो गयी और मै कब उस बच्चे के साथ मशगूल हो गयी। उन कुछ मिनटो को जब मैने बाद में कई बार याद किया और अपने दोस्तो और परिवार वालो से सांझा किया तो हर बार एक मीठा सुकून मिला, हर बार लगा जैसे कुछ तो अच्छा कर रही हूॅ मै।
शायद इसीलिए आज ये पल आपके सामने भी बयाॅ कर रही हूँ। मकसद सिर्फ इतना है की आप भी यकीनन कई ऐसे पलों से गुजरे होगे जिनको याद करके थोड़ी अलग सी खुशी और सुकून मिला हो आपको । मै ये तो नहीं जानती की उन मासूम चेहरो से मैने क्या-क्या सीखा पर मेरी संवेदना जरूर जगी है।