किशोरअवस्था में ज्यादा पीने से आपके दिमाक का विकास बाधित हो सकता है और किसी व्यक्ति की जीनस और उसके आचरण पर चिरस्थाई प्रभाव डाल सकताहै। ये एक भारतीय-अमरीकी मनोरोग चिकित्सक का कहना है।
शिकागो स्थित यूनीवर्सिटी ऑफ इलिनॉई में मनोरग चिकित्सा के प्रोफेसर सुभाष पांडे कहते हैं, “किशोरअवस्था में दिमाग को जो कनेक्शन स्थापित करने होते हैं वो लगातार शराब पीने के कारण नहीं हो पाते। जैसा विकास दिमाग का होना चाहिए वैसा हो नहीं पाता”।
न्यूरोबायलोजी ऑफ डिज़ीज़ में ऑनलाईन प्रकाशित इस शोध में पांडे और उनके सहयोगियों ने प्रायोगित चूहों का इस्तेमाल करते हुए विकास के किशोर कालीनचरण में शराब के सेवन के प्रभावों को जाना।
पांडे कहते हैं, “आमतौर पर किशोरअवस्था में दिमाग के विकास के लिए जीनस की जो क्रिया होती है वो शराब के संपर्क में आने से प्रभावित होती है। इन जीनस मेंबदलाव आने से वयस्कता में शराब की ललक और बेचैनी भरा आचरण होने का अंदेशा बढ़ जाता है”।
पांडे के मुताबिक ये व्यवहारवादी प्रभाव “एपिजेनेटिक” बदलावों की वजह से होते हैं। एपिजेनेटिक बदलाव डीएनए या फिर उसके इर्द-गिर्द प्रोटीन्स के केमिकल मोडिफिकेशन्स होते हैं। ये बदलाव कई प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं जिसमें किशोरअवस्था के दौरान दिमाग का विकास भी शामिल है।
इंसानों में ज्यादा पीने के प्रभावों को पढ़ने के लिए शोधकर्ताओं ने 28 दिन बड़े चूहों को दो दिन लगातार शराब दी और दो दिन बिना शराब के रखा। ये प्रक्रिया वो 13 दिनों तक दोहराते रहे। किशोरअवस्था में जिन चूहों को शराब दी गई उनमें व्यवहार में बदलाव देखा गया जो वयस्कता तक देखे गए, जबकि शराब का नशा बेहद समय पहले खत्म हो चुका था।
इन चूहों में बढ़ी हुई बेचैनी और वयस्कता में शराब के प्रति ज्यादा ललक देखी गई। जब शोधकर्ताओं ने चूहों के एमिगडला नामक दिमाग के हिस्से से एक टिशू निकालकर विश्लेषण किया, तो पाया कि उनके डीएनए में भी बदलाव हुआ था।