इंटरनेट ब्राऊज़ कर जानकारी की खोज करने से लोगों को ये लगता ही कि वो स्मार्ट हैं, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि इस भावना के कई नकारात्मक प्रभाव भी हैं।
येल यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान के शोधकर्ता, मैथ्यू फिशर कहते हैं, “इंटरनेट एक बेहद शक्तिशाली माध्यम है, जहां आप कोई भी सवाल डाल सकते हैं और आपको अपनी फिंगटिप्स पर दुनिया की हर जानकारी मिल जाती है”।
फिशर के मुताबिक, “इस बाहरी स्रोत के साथ अपने ज्ञान को मिलाकर आप उलझ जाते हो। जब इंसान बिना इंटरनेट के होता है, तब उसे इस बात का पता चलता है कि वो कितना गलत है और इंटरनेट पर कितना निर्भर है”।
प्रयोगों की एक श्रृंखला में पाया गया कि जो प्रतिभागी जानकारी के लिए इंटरनेट ब्राउज़ करते थे, उनका ये मानना था कि वो ज्यादा ज्ञानी हैं बनिस्पत उनके जो इंटरनेट का इस्तेमाल बेहद कम करते हैं। इंटरनेट के प्रयोग के बाद प्रतिभागियों को अपने ज्ञान में इज़ाफे का भ्रम था, वो भी तब जब उन्हें वो मनचाही जानकारी हासिल नहीं हो पाई।
शोध के सह-शोधकर्ता फ्रैंक नील कहते हैं, “इंटरनेट सर्च करने के बाद प्रतिभागियों यो भी एहसास हुआ कि उनका दिमाग बेहत सक्रीय है। इस धारणा के ज्ञानात्मक प्रभाव इतने शक्तिशाली होते हैं कि इंटरनेट पर खोज में कुछ नहीं हासिल होने पर भी वो खुद को स्मार्ट समझते हैं”।
फिशर कहते हैं कि लोग जब भी कोई किताब पढ़ते हैं तो उन्हें शोध में सक्रीय रूप से व्यस्त रहना चाहिए या फिर किसी विशेषज्ञ से बात करनी चाहिए, बनिस्पत इसके कि वो इंटरनेट सर्च करें। बकोल फिशर, “अगर आपको किसी सवाल का जवाब पता नहीं है, तो नहीं है, और इसके लिए आपको काफी वक्त और प्रयास की ज़रूरत होगी। लेकिन अगर आपके पास इंटरनेट है तो आपको ये समझ नहीं आएगा कि आपको क्या पता है, और ये कि आपकी सोच में आपको पता है या फिर बिल्कुल भी नहीं पता है”।